Garibi Shayari - Hello Dosto Aaj Ki Jo Post Hone Ja Rahi hai wo Hai Garibi Shayari Garibi Hume Wo Shikhati Deti Hai Jo Hame Koi nahi Shikha Shakta Hai, Garibi Wo Dard Hai Jo Kabhi Kam Nhi Hota, Eshi Ke Related Ham Lekar aaye hai Garibi Shayari In Hindi Aur Garibi Shayari images Ka Shandaar Collection Aap Ko Dekhne Ko Mil Sakta Hai
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New Garibi Shayari in Hindi (2024) | गरीबी शायरी इन हिंदी | Best Garibi Shayari Hindi
राहों में कांटे थे फिर भी वो चलना सीख गया,
वो गरीब का बच्चा था हर दर्द में जीना सीख गया।
खिलौना समझ कर खेलते जो रिश्तों से
उनके निजी जज्बात ना पूछो तो अच्छा है
बाढ़ के पानी में बह गए छप्पर जिनके
कैसे गुजारी रात ना पूछो तो अच्छा है
ग़रीबो का क्या खूब मज़ाक उड़ाया जा रहा है,
1 रोटी दे कर 100 तस्वीर खिंचाया जा रहा है?
गरीब भूख से मरे तो अमीर आहो से मर जाए।
इनसे जो बच गए वो झूठे रिवाजो से मर जाए।
सहम उठते हैं कच्चे मकान पानी के खौफ़ से
महलों की आरज़ू ये है कि बरसात तेज हो
सुला दिया माँ ने भूखे बच्चे को ये कहकर ,
परियां आएंगी सपनों में रोटियां लेकर।
गरीबी में भोजन ना सही, पानी से गुज़ारा कर लेते है, *
कैसे बताये हम गरीबी में कुछ भी समझौता कर लेते है ।
जो गरीबी में एक दिया भी न जला सका।
एक अमीर का पटाखा उसका घर जला गया।
अमीरी का हिसाब तो दिल देख के किजिए साहब,
वर्ना गरीबी तो कपडों से ही झलक जाती है !
यहाँ गरीब को मरने की इसलिए भी जल्दी है साहब,
कहीं जिन्दगी की कशमकश में कफ़न महँगा ना हो जाए।
हम गरीब है जनाब अपनी ख्वाहिशों का
गला घोट कर परिवार को पालना बखूबी जानते है.!!
किस्मत को खराब बोलने वालों,
कभी किसी गरीब के पास बैठकर,पूछना जिंदगी क्या है !
तहजीब की मिसाल गरीबों के घर पे है,
दुपट्टा फटा हुआ है मगर उनके सर पे है।
ऐ सियासत तूने भी इस दौर में कमाल कर दिया,
गरीबों को गरीब अमीरों को माला-माल कर दिया .
ऐ सियासत तूने भी इस दौर में कमाल कर दिया,
गरीबों को गरीब अमीरों को माला-माल कर दिया !
साथ सभी ने छोड़ दिया, लेकिन ऐ-गरीबी,
तू इतनी वफ़ादार कैसे निकली।
दिल को बड़ा सुकून आता है,
किसी गरीब की सहायता करने,पर जब वह मुस्कुराता है !
इसे नसीहत कहूँ या जुबानी चोट साहब
एक शख्स कह गया गरीब मोहब्बत नहीं करते
गरीब की गरीबी का मजाक उड़ाने वाले,
कुछ तो शर्म करो तुम उस खुदा के आगे,
बड़ी बेशरम होती है ये गरीबी,
कमबख्त उम्र का भी,लिहाज नहीं करती !
खुले आकाश के नीचे भी अच्छी नींद पा लेते है
गरीब थोड़ी सब्जी में भी चार रोटी खा लेते है..!
अजीब सा जादुई नशा होता है गरीब की कमाई में,
जिसकी रोटी खाकर पथरीले रास्तों पर भी सुकून की नींद आ जाती है।
यूँ न झाँका करो किसी गरीब के दिल में,
के वहाँ हसरतें वेलिबास रहा करती हैं।
बड़ी बेशरम होती है ये गरीबी,
कमबख्त उम्र का भी,लिहाज नहीं करती !
खुले आकाश के नीचे भी अच्छी नींद पा लेते है
गरीब थोड़ी सब्जी में भी चार रोटी खा लेते है..!
मरहम लगा सको तो किसी गरीब के जख्मों पर लगा देना,
हकीम बहुत हैं बाजार में अमीरो के इलाज के खातिर !
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता है
वो मजदूर, जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है
घर में चुल्हा जल सकें इसलिए कड़ी धूप में जलते देखा है,
हाँ मैंने ग़रीब की साँसों को भी गुब्बारों में बिक़ते देखा है।
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी,
जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है !
फ़ेक रहे तुम खाना क्योंकि, आज रोटी थोड़ी सूखी है,
थोड़ी इज्ज़त से फेंकना साहेब,मेरी बेटी कल से भूखी है।
किसी की गरीबी की मज़ाक मत बनाना यारों,
क्योकि कमल अक्सर कीचड़ में ही पैदा होता है ।
मोहब्बत हमारी किस्मतमें कहां
साहब हम तो गरीब है हमें सिर्फ हम दर्दीया मिलती है..
गरीब की किस्मत ही खोटी मिलती है,
मेहनत के अनुसार आमदनी छोटी मिलती है,
दिन भर खून पसीना एक करते है, तब जाकर,
रात को खाने में आधी रोटी मिलती है।
थोड़े से लिबास में ख़ुश रहने का हुनर रखते हैं,
हम गरीब हैं साहब, अलमारी में तो खुद को कैद करते हैं।
छीन लेता है हर चीज मुझसे ऐ खुदा,
क्या तू मुझसे भी ज्यादा गरीब है !
वो कुछ इस तरह गरीबी को हरा देते है,
जब बिना कपडे बिना खाने के भी वो मुस्कुरा देते है ।।
ख़डा हु आज़ भी रोटी के चार हर्फं लिये
सवाल़ यह हैं क़िताबो ने क्या दिया मुझ़कों
राहों में कांटे थे फिर भी वो चलना सीख गया,
वो गरीब का बच्चा था हर दर्द में जीना सीख गया ।।
जब खुदगर्ज़ी जज़्बातो के करीब हो जाती है,
तब मुकम्मल रिश्तो में भी गरीबी हो जाती ।
हर गरीब की थाली में खाना है,
अरे हाँ ! लगता है यह चुनाव का आना है।
भटकती है हवस दिन-रात सोने की दुकानों पर ,
गरीबी कान छिदवाती है तिनके डाल देती है।
गरीबों के बच्चे भी खाना खा सके त्यौहारों में,
तभी तो भगवान खुद बिक जाते है बाजारों में.
तुम रूठ गये थे जिस उम्र में खिलौना न पाकर,
वो ऊब गया था उस उम्र में पैसा कमा-कमा कर.
फेका हुआ कचरा किसी की ख्वाहिशो का सामान हो गया
कही था छप्पन भोग सजा तो कही बेचारा भूखा ही सो गया..!
अजीब मिठास है मुझ गरीब के खून में भी,
जिसे भी मौका मिलता है वो पीता जरुर है
शाम को थक कर टूटे झोपड़े में सो जाता है
वो मजदूर, जो शहर में ऊंची इमारतें बनाता है
ए खुदा किसी एक के चले जाने से
ये दुनिया अधूरी नही होती
लेकिन लाखों मिल जाने पर भी
उस शख्स की कमी पूरी नही होती..!!
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